बुधवार, 16 अप्रैल 2008

उदारीकरण , निजिकरण व आरक्षण

यूपीए सरकार के गठन के समय न्यूनतम साझा कार्यक्रम बना था जिसमें निजी क्षेत्र में आरक्षण देने की बात कही गयी थी। इसके अतिरिक्त खाली पदों पर भर्ती एवं आरक्षण कानून बनाने की बात भी इसमें कही गयी थी, परन्तु इस दिशा में भी अभी कुछ नहीं हो सका है।
कांग्रेस पार्टी ने आर्थिक ‘सुधारों’ और निजीकरण के द्वारा भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रतिस्पर्धा के जरिए विकास के सिद्धांत को स्थापित करने की रणनीति अपनाई। लेकिन उसे मालूम है कि इससे चुनाव जीते नहीं जा सकते, इसलिए उसे भी मजबूर होकर शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण और निजी क्षेत्रों में आरक्षण के मुद्दे को अपनाना पड़ा। "निजी क्षेत्र में कमज़ोर वर्ग के लिए आरक्षण प्रदान करने के लिए, कांग्रेस पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में इसके स्पष्ट ज़िक्र के बावजूद कोई विधेयक नहीं लाया गया है." उद्योग समूह इस विषय में स्वैच्छिक कार्रवाई के पक्ष में हैं. लेकिन क्या वे यह बता सकते हैं कि उन्होंने कमज़ोर वर्गों के लिए अब तक क्या किया है? निजी क्षेत्र में कितने दलित काम कर रहे हैं? उद्योग समूह इस बारे में आँकड़े क्यों नहीं देते? हमारी जानकारी के मुताबिक ये संख्या नगण्य है."
अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के आंदोलन के भारी दबाव के कारण केन्द्र सरकार ने उघोगपतियों से वार्ता करना शुरू किया। इसके लिए मंत्रियों की एक कमेटी का भी गठन किया, जिसने सिफारिश की कि निजी क्षेत्र में दलितों को आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता है। कई बार उघोगपतियों के संगठनों ने सरकार से बातचीत भी की और आश्वासन दिया कि वे अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कोटा लादने का जमकर विरोध किया और उसके बदले में कहा कि वे शिक्षा एवं प्रशिक्षण के स्तर पर दलितों की पूरी सहायता के लिए तैयार हैं। इसके लिए कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) ने जे.जे. ईरानी के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया, जिसने शिक्षा और प्रशिक्षण के क्षेत्र में सहयोग करने की सिफारिश की। सरकार से जब जानकारी मांगी गयी कि अभी तक निजी क्षेत्र में दलितोत्थान के लिए क्या–क्या कार्य किए गए तो उसका जबाब आया ही नहीं। आए कैसे, उघोगपतियों को तो समय नष्ट करना है। यदि इनका इरादा नेक होता तो आरक्षण कोटे का विरोध क्यों करते?
Dec. 19,2003 को SC/ST के सदस्यों को सम्बोधित करते हुए अटळ बिहारी वाजपेयी ने भी निजि क्षेत्र में आरक्षण का पक्ष लिया था । इसी के साथ ही 2004 के चुनाव घोषणा पत्र मे कांग्रेस व भारतिय जनता पार्टी ने निजि क्षेत्र में SC/ST व OBC के लिए कल्याणकारी कार्य करने की घोषणा की थी। वामपंथी पार्टियाँ आर्थिक न्याय की राजनीति पर जोर दिए जाने की वकालत करती रही, लेकिन सत्ता से जुड़े रहने के बावजूद ठोस धरातल पर वे इस दिशा में कुछ भी कारगर प्रयास नहीं कर सकीं। जो चरमपंथी वामपंथी पार्टियाँ थी उनलोगों ने नक्सलवाद के रूप में आर्थिक न्याय को हासिल करने के लिए एक ऐसी राह पकड़ ली, जो लोकतंत्र और संविधान के ही विपरीत दिशा में काम करता है।
आरक्षण के पक्ष और विपक्ष मे जो भी दलील दी जा रही हो लेकिन इसके समर्थन और विरोध मे मे जो भी है क्या उन्होने इस नजरिये पर ध्यान दिया है कि, भूमंडलीकरण कि वजह से आरक्षण का क्या रूप बचेगा? भूमंडलीकरण के इस दौर मे आरक्षण किस तरह सफल हो सकता है? अभी तो सब भूमंडलीकरण कि वास्त्विक्ताओ पर कम और मनोगत भावनाओ और पुर्वाग्रहो ज्यादा हो हल्ला कर रहे है। आईये थोडा पिछे जाकर आरक्षण कि वास्तविकता पर नजर डालते है। आजादी के बाद संविधान ने " सामाजिक स्तर पर कमजोर वर्गों विशेषकर दलितो और आदिवासियो के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त कि थी। संविधान मे इसके लिये विशेष प्रावधान किये गए। इसके बाद मंडल कमीशन के माध्यम से ओबीसी को आरक्षण दिया गया। 1990 के दशक मे आरक्षण कि जो राजनीती शुरू हुई उसने देश कि दशा और दिशा दोनो बदल दी। लेकिन इसे वक्त एअक और परिवर्तन हुआ जिसकी आहट सब लोगो के कान तक नही पहुची। यही वो दौर था जब नरसिम्हा राव सरकार ने " वॉशिंग्टन आम राय " पर आधारित भूमंडलीकरण को अपनाया। गौर करने कि बात ये है कि किसी भी दल ने इसका विरोध नही किया। " वॉशिंग्टन आम राय " के दस सूत्री कार्यक्रम के आलोक मे मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधार शुरू किया। इन सुधारो का बहुत प्रभाव पड़ा। सरकारी क्षेत्र मे उपलब्ध नौकरियों कि संख्या मे कमी आयी।
1991 मे उदारीकरण व निजिकरण के साथ ही निजि क्षेत्र को ज्यादा सरकारी साहयता मिली तथा सरकार ने भारी उधोगों का विनिवेश भी कर दिया। इस से रोजगार के अवसर सरकारी क्षेत्र से निकल कर निजि क्षेत्र मे चले गऐ । NCSC की रिर्पोट के अनुसार ऐकले SC 1,13,430 नौकरियौं के अवसर 1992-97 तक खो चुका है।
निजि क्षेत्र SC/ST व OBC के आरक्षण की मांग की मांग को पचा नही पा रहा है। यह SC/ST व OBC के लिए आरक्षण को मना कर रहा है। Sept.21, 2004 को राहुल बजाज, अध्यक्ष बजाज औटो ने अपने The Times of India, के लेख मे कहा की निजि क्षेत्र SC/ST को 1/3 रोजगार के अवसर प्रदान कर रहा है। तथा इस से निजि क्षेत्र मे योगयता के आधार पर बनने वाली विरयता सुची को हानी पहुच रही है। इसी तरह सुनील मुंजाल के अनुसार निजि क्षेत्र में आरक्षण के लिए व्यक्तिगत योगयता, उत्पाद गुणवंता व विशव प्रतिस्पर्धा के मामले मे समझोता नही कर सकते है। June 23, 2004 मे ईनफोसिस के अध्यक्ष नारायण मुरठी ने माना है कि हम आरक्षण के खिलाफ नही है परन्तु यह आर्थिक आधार पर होना चाहीए न की जातिय आधार पर । प्रमुख उधोग चैंबर CII के अध्यक्ष सुनील मितल ने कहा कि दलितों को नोकरियां दिलाने का काम जबरन नही हो सकता । स्वैच्छिक तरिका ही एकमात्र उपाय है। उल्लेखनीय है कि विभिन्न उधोग संगठनों के प्रतिनिधियों ने इस मुद्दे पर मुख्य सचिव टी के नायर के साथ बैठक की थी
एसोचैम के अध्यक्ष वेणुगोपाल एन.धूत ने कहा, “हम निजी क्षेत्र में आरक्षण का समर्थन कर सकते हैं बशर्ते उसे हमारे सुझावों के मुताबिक लागू किया जाए।” उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र में आरक्षण प्रणाली लागू करने के वास्ते खुद को तैयार करने के लिए उद्योगों को अभी तीन-चार साल का वक्त चाहिए। उन्होंने कहा, “उद्योगों को आरक्षण व्यवस्था को लागू करने में अभी समय लगेगा और यह बेहतर होगा कि केन्द्र अथवा राज्य सरकार इसे कानून बनाकर क्रियान्वित करने के लिए दबाव न बनाएं।” गौरतलब है कि पिछले वर्ष अगस्त माह में राज्य की मायावती सरकार ने नये आरक्षण सिध्दान्तों के अनुसार, ''सभी निजी निवेशकों को राज्य में औद्योगिक इकाई स्थापित करने के लिए रियायत प्रदान की जाएंगी लेकिन उन्हें अपने यहां नौकरी में अनुसूचित जाति को 10 प्रतिशत तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देना होगा। इसमें पिछड़े धार्मिक अल्पसंख्यक भी शामिल होंगे। निजी क्षेत्रों को अन्य 10 प्रतिशत आरक्षण उच्च जातियों में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को भी देनी होगी।'' गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश, भारत का पहला राज्य है जहां निजी क्षेत्र में आरक्षण नीति लागू है।
निजी क्षेत्र में आरक्षण देने के लिए गठित समन्वय समिति की इस दूसरी बैठक में उद्योग जगत ने आरक्षण मसले पर संसद के किसी क़ानून की बजाय इस पर उद्योग जगत के 'एफ़ेरमेटिव एक्शन' यानि स्वैच्छिक कार्रवाई की वकालत की है. निजी क्षेत्र में आरक्षण का विरोध क्यों जबकि अमेरिका में स्वैच्छिक पहल (affirmative actions) के ज़रिए चालीस साल पहले ही निजी कंपनियों ने अपने यहां कई स्तरों पर आरक्षण का प्रावधान शुरू किया. 1970 के दशक में आईबीएम ने अपने यहां अश्वेतों को आरक्षण देना शुरू किया., 1982 में अमेरिका में एक सर्वे में खुलासा हुआ कि मीडिया में सिर्फ़ दो फ़ीसद अफ़्रो-अमेरिकन हैं. यहां अख़बार और चैनल मालिकों ने अफ़रमेटिव एक्शन लेते हुए अल्पसंख्यकों को न सिर्फ़ ट्रेंड किया बल्कि नौकरियां भी दीं. नतीजा यह हुआ कि मीडिया में एफ़्रो-अमेरिकन की तादाद सात फ़ीसद हुई. कई मामलों हैं जब अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के पक्ष में फ़ैसला सुनाया है. क्या भारत में इस तरह के एक्शन (बिना क़ानून लाए) निजी कंपनियां ले रही है?
देश के दो बड़े निजी बैंक, निजी क्षेत्र में आरक्षण के मामले में एक नया रास्ता दिखा रहे हैं। आईसीआईसीआई और एचडीएफसी बैंक ने अपने कर्मचारियों में इस बात का हिसाब लगाना शुरू कर दिया है कि ‘अफर्मेटिव एक्शन’ के पैमाने पर वो कहां खड़े होते हैं। आईसीआईसीआई बैंक में काम करने वाले लोगों में से कौन किस जाति का है? कितने लोग अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं? बैंक का प्रबंधन खुद यह सवाल पूछ रहा है। उसने अपने सारे कर्मचारियों से इसका जवाब मांगा है।खबर है कि ऐसी गिनती एचडीएफसी बैंक में भी हो रही है, लेकिन वो इस पर कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। लेकिन आईसीआईसीआई बैंक का कहना है कि यह काम आरक्षण का कोटा भरने के लिए नहीं किया जा रहा है। वो यह जांच करना चाहते हैं कि जब बिना जाति पूछे उन्होंने लोगों को नौकरी दी तो सभी लोगों को बराबर का मौका मिला या नहीं।
निजि क्षेत्र का कहना है की आरक्षण निति के साथ ही उनका उत्पाद खर्च बढ़ता है जिसके कारण उनकी विशव बजार मे प्रतिस्पर्धा शक्ती कम होती है तथा इसका असर उत्पाद पर पडता है। जबकी उदारीकरण, आर्थिक ‘सुधारों’ और निजीकरण के साथ ही निजि क्षेत्र को ज्यादा सरकारी साहयता व अन्य लाभ भी मिल रहे है। इसके साथ-साथ जोब सिक्योर्टी व पदोन्नती तथा आरक्षण के अन्य फायदों पर भी चर्चा करने की आवशयकता है,लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती है। सिर्फ बैंक की प्रणाली सही होने से काम नहीं चलेगा। समाज में सभी तबकों और जातियों के लोगों को यह मौका मिलना जरुरी है कि वे अपनी काबिलियत के हिसाब से प्रशिक्षण हासिल कर सकें और चुनाव प्रक्रिया में बराबरी से शामिल हो सकें

प्रदीप गोल्याण, Date:- 16. Apr 2008
विश्लेषक एवं लेखक
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